Saturday, September 20, 2025

मैत्रेयी पुष्पा से बुन्देलखण्ड पर आधारित साहित्य एवं बुन्देलखण्डी संस्कृति पर एक साक्षात्कार

 



हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा का अधिकांश जीवन बुन्देलखण्ड के खिल्ली गाँव में बीता और उच्च शिक्षा झाँसी में हुई। बुन्देलखण्डी परिवेश में रहकर बड़ी हुईं मैत्रेयी पुष्पा के विभिन्न उपन्यासों, ‘इदन्नमम’, ‘बेतवा बहती रही’, ‘अल्मा कबूतरी’ आदि में बुन्देलखण्ड के भूगोल, सामाजिक-जनजीवन, संस्कृति आदि का सम्पूर्णता से परिचय मिलता है। मैत्रेयी पुष्पा को हिन्दी अकादमी द्वारा साहित्य कृति सम्मान, ‘फैसला’ कहानी पर कथा पुरस्कार, ‘बेतवा बहती रही’ उपन्यास पर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा प्रेमचन्द सम्मान, इदन्नमम’ उपन्यास पर शाश्वती संस्था बंगलौर द्वारा नंनजनागुडु तिरुमालम्बा पुरस्कार, म.प्र. साहित्य परिषद द्वारा वीरसिंह देव सम्मान तथा वनमाली सम्मान आदि से सम्मानित किया गया है। प्रस्तुत साक्षात्कार में मैत्रेयी पुष्पा ने बुन्देलखण्ड से सम्बन्धित साहित्य एवं विभिन्न पहलुओं पर  अमिता चतुर्वेदी से अपने विचार व्यक्त किए हैं।

Wednesday, September 17, 2025

ऐतिहासिक यथार्थ से वर्तमान यथार्थ तक: वृंदावनलाल वर्मा से मैत्रेयी पुष्पा के साहित्य में बुंदेलखंड के चित्रण की यात्रा


 

साहित्य किसी भी क्षेत्र के संस्कृति-संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हिन्दी साहित्य में बुन्देलखण्डी संस्कृति को अन्य क्षेत्रों की संस्कृति की अपेक्षा कम महत्व दिया गया है। साहित्य में संस्कृति के संरक्षण की दृष्टि से वृन्दावन लाल वर्मा और मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों में बुन्देलखण्डी-संस्कृति का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। उनके उपन्यासों में निहित बुन्देलखण्ड के भौगोलिक,ऐतिहासिक, सामाजिक-राजनीतिक पहलू, जनजीवन, संस्कृति , बोली आदि  का चित्रण, हिन्दी साहित्य में संग्रह के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वृन्दावनलाल वर्मा तथा मैत्रेयी पुष्पा दोनों साहित्यकारों के उपन्यासों की पृष्ठभूमि बुन्देलखण्ड होते हुए भी उनमें समयकाल और परिवेश के आधार पर कुछ बुनियादी अन्तर हैं।

Monday, September 15, 2025

बुन्देलखण्ड की लोक-संस्कृति और इतिहास के संग्रह में हिन्दी साहित्य की भूमिका: एक मूल्यांकन

 

झाँसी के किले से लिया गया सम्पूर्ण झाँसी शहर का चित्र जिसमें सुदूर झाँसी की पहाड़ियों में से एक पहाड़ी दिखाई दे रही है।   

बुन्देलखण्ड मध्य-भारत का ऐसा भाग है, जिसमें उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों राज्यों के आंशिक क्षेत्र समाहित हैं। बुन्देलखण्ड के अलग-अलग भागों में इतिहास, संस्कृति और भाषा की दृष्टि से विविधता होते हुए भी भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक समानता लिए हुए एक अलग ही विशिष्टता है। किसी भी प्रान्त पर आधारित साहित्य में वहाँ की संस्कृति का संरक्षण उस क्षेत्र की भौगोलिक, सांस्कृतिक-जनजीवन, जनजातियों, बोली आदि विशिष्टताओं के समावेश द्वारा होता है। परन्तु बुन्देलखण्ड पर आधारित साहित्य का पर्याप्त विश्लेषण नहीं हुआ है। साहित्य किसी स्थान की विशेषताओं से समाज को समग्र रूप से अवगत कराता है और वहाँ के जनजीवन से परिचय कराकर लोकप्रियता प्रदान करता है। प्रस्तुत लेख में बुन्देलखण्डी लोक-संस्कृति एवं जन-जीवन पर आधारित साहित्य का इन सभी आयामों के परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन किया गया है। इस लेख का मुख्य उद्देश्य इस प्रश्न का उत्तर देना है कि क्यों साहित्य किसी क्षेत्र की संस्कृति और लोक-जीवन के ऐतिहासिक और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अध्ययन के लिए उपयुक्त माध्यमों में से एक प्रमुख विकल्प है।