नवम्बर की धीरे-धीरे बढ़ती हुई सर्दी में सुबह के समय छत पर टहलते हुए मैं देख रही थी कि धुँधले आसमान में चार-पाँच दिन से एक लाल रंग की पतंग रोज उड़ती है जो मेरा ध्यान आकर्षित करती थी। मैं सोचती थी कि कैसे स्वच्छंदता से उड़ती हुई एक अनजानी पतंग हर एक से रिश्ता बना लेती है। प्रतिदिन शान्त आसमान में पक्षियों के बीच उड़ती पतंग अपने में मगन रहती थी। कई दिन उस पतंग के उड़ते रहने के बाद एक दिन एकाएक दूसरी हरे रंग की पतंग भी उड़ने लगी। इसके बाद दोनों पतंगों में प्रतिस्पर्धा शुरू हुई। पहले से उड़ती शान्त पतंग चंचलता से झूमने लगी और ऊँचे आसमान में पहुँच गई। दूसरी पतंग धीरे-धीरे ऊपर बढ़ी और लाल पतंग से पेंच लड़ने लगी। तभी लाल पतंग ने उसे काट दिया। दूसरे दिन फिर वही हरी पतंग आई लेकिन पहले से उड़ती निर्भीक लाल पतंग का मुकाबला करने का साहस न कर सकी और नीचे उतर गई। तीसरे दिन हरी पतंग फिर चुपचाप से आई और पहले से पेंगें बढ़ाती लाल पतंग ने फिर उसका पीछा किया। थोड़ी देर दोनों पतंगों ने पेंच लड़ा लेकिन फिर हरी पतंग बीच में ही नीचे उतर गई। मैं बार-बार टहलना छोड़कर पतंगों की अठखेलियाँ देख रही थी।