Saturday, November 9, 2019

दर्शकों के मन में हलचल पैदा करने वाले नाटक ‘खिड़की’ द्वारा रंगलोक नाट्य उत्सव का समापन




रंगलोक नाट्य महोत्सव के तीसरे संस्करण का इस गुरुवार आगरा शहर के सूरसदन प्रेक्षागृह में प्रिज़्म नाट्य समूह की प्रस्तुति के साथ सफल समापन हुआ। विकास बहरी द्वारा निर्देशित, कहानी के अन्दर कहानी कहता हुआ खिड़की  नाटक, एक लेखक के कहानी के अन्त को खोजने के द्वन्द को व्यक्त करता है। अपने में अलग प्रकार की संवेदनाओं को समेटे हुए यह नाटक दर्शकों को अन्त तक तन्मयता से डूब जाने को विवश करता है। दो पात्रों में सीमित नाटक की कहानी की सुन्दरता को दोनों ही कलाकारों के अपूर्व अभिनय ने अन्त तक बनाए रखा।
कहानी के मुख्य पात्र, जतिन सरना द्वारा अभिनीत, एक लेखक- वेद के माध्यम से अपने लेखन की प्रतिभा को स्वयं अपने और दूसरी पात्र, प्रियंका शर्मा द्वारा अभिनीत, वेदिका की दृष्टि से परखते हुए कहानी पात्रों के मन की गहराईयों में डूबती-उतराती दर्शकों के मन में हलचल पैदा करती है। वेदिका का सहज हास्य और सहज ही  भाव-विह्ववलता और उसके प्रत्युत्तर में वेद की उतनी ही सहजता से प्रतिक्रिया और संवेदना, एक उच्च स्तर के अभिनय-कौशल को व्यक्त करती है।
बिना किसी तड़क-भड़क के सहज-सरल रंगमंचीय सज्जा के साथ पात्रों के कुशल अभिनय से पूर्ण खिड़की नाटक, विकास बहरी के कुशल निर्देशन और सटीक प्रकाश व्यवस्था का भी परिचायक है। आगरा में ‘रंगलोक थियेटर उत्सव’ के अंतर्गत इस सराहनीय नाटक का मंचन, डिम्पी मिश्रा के रंगमंच के उत्तरोत्तर विकास के प्रयास को और ऊँचाईयाँ देने में निश्चित ही सहायक होगा।
अमिता चतुर्वेदी 

Tuesday, July 30, 2019

लुबना सलीम की ‘गुड़म्बा’ नाटक में एकल प्रस्तुति- एक लघु समीक्षा


‘गुड़म्बा’ मशहूर लेखक ज़ावेद सिद्दीकी द्व्रारा लिखित तथा सलीम आरिफ़ द्वारा निर्देशित एक संवेदनशील एकल नाटक, 27 जुलाई को सूरसदन प्रेक्षागृह में अभिनीत किया गया। नाटक के प्रारम्भ में सहजता से अभिमुख होती हुई, इस एकल नाटक की कलाकार लुबना सलीम ने क्षण भर में दर्शकों से आत्मीयता स्थापित कर ली, फिर एक पात्र में अनेक पात्रों को जीती हुई, कभी अपने जीवन के पुराने समय और कभी वर्तमान में दर्शकों को पहुँचाती रही। नाटक की मुख्य और एकमात्र पात्रा अमीना(लुबना सलीम) अपने पति, बेटे और बहू के साथ रहती है। एक औरत की समाज में निम्नतर स्थिति इस नाटक के माध्यम से स्पष्ट होती है, जिसको उसका पिता, पति और पति के घर वाले अपने आधीन रखते हैं।

Sunday, April 28, 2019

फिल्मों के विदाई के गीतों में महिलाओं की असहायता का महिमामंडन

Source: Shemaroo Videos  
अमिता चतुर्वेदी 

एक लड़की के विवाह से ही ‘विदा’ शब्द जुड़ा होता है क्योंकि उसके जीवन में अपने घर से जिस तरह का निष्कासन होता है, वह और किसी के साथ नहीं होता। एक लड़की के अतिरिक्त घर का कोई भी सदस्य वापस अपने घर में एक मेहमान के रूप में नहीं आता। विदा के समय घर के दरवाजे से कदम निकालते ही उसे आभास कराया जाता है कि यह घर अब उसका नहीं है। उसे अपने घर से परायेपन की अनुभूति होने लगती है। ‘पराया’ का सीधा अर्थ लगाया जा सकता है कि अब लड़की के सुख-दुख से उसके घर वालों का कोई सम्बन्ध नहीं है और विदा के समय निकले पहले  कदम के साथ ही उसका सम्बन्ध उस घर से सदा के लिए समाप्त हो जाता है; उस घर से, जहाँ उसके बचपन, किशोरावस्था और यौवन की यादें उसके मन में सदा समायी रहती हैं ।
यही परम्परा और प्रथा पुराने समय से लेकर आज तक चली आ रही है। एक लड़की के पराये होने के सामजिक बोध के इस कटु सत्य पर आधारित, फ़िल्मों में कितने ही गाने बनाए गए हैं, जिनमें वह अपने घर-आँगन की याद कर रही होती है। ये गाने लड़की के पराये होने के बोध को व्यक्त करने के साथ, समाज की इसी सोच को और पुष्ट करते हैं। प्रस्तुत है ऐसे ही कुछ गीतों का विश्लेषण-

Tuesday, March 19, 2019

एक सड़क-दुर्घटना का समाजशास्त्र




सात दिसम्बर 2017 की रात एक दुर्घटना ने मेरे जीवन में अनेक नये अनुभव जोड़ दिए। रोज की तरह जिम से, स्कूटी पर लौटते हुए, मैं अपनी कॉलौनी तक पहुँचने वाली थी। डिवाईडर के कट पर खड़ी हुई थी, बस सड़क को पार कर सामने जाना था। हेलमेट पहने हुए थी। मैंने सीधे हाथ का इंडीकेटर दे दिया था। वाहन एक के बाद एक आ रहे थे, मेरी नजर बाँईं तरफ़ लगी हुई थी। जब मैंने देखा कि अगला वाहन कुछ दूर है तो सड़क पार करने लगी। थोडा सा बढ़ी थी कि सहसा एक बीस-बाईस साल के मोटर साईकिल सवार लड़के ने मेरी स्कूटी में जोर से ट्क्कर मार दी। वह लड़का इतनी तीव्रता से आया कि न तो मुझे वह आता हुआ दिखा और न ही मुझे टक्कर होने की आवाज सुनाई दी, जो लोगों को काफ़ी दूर तक सुनाई दी थी। मुझे केवल पता चला कि मुझे कुछ हुआ है। शायद हल्की सी बेहोश हो चुकी थी। बस इतना ध्यान रहा कि कोई पूछ रहा है कि आपके पति का क्या नाम है, जो मैंने बता दिया। पूछने वाले पास ही स्थित पुलिस चौकी के आदमी थे।