धर्म और साहित्य का सम्बन्ध आज एक नया रूप ले चुका है, जिसके
फ़लस्वरूप पौराणिक कथाओं पर आधारित अनेक उपन्यास आजकल लोकप्रिय हो रहे हैं। इन
उपन्यासों में पौराणिक पात्रों को नवीन परिवेश में रूपान्तरित कर, बड़ी
कुशलता से आज देश में आक्रामक रूप से हिंसा
का प्रश्रय लेती हुई, धार्मिकता का लाभ उठाने का प्रयास किया जा रहा है। साथ ही
इनमें वर्णित ब्राह्णणवाद, जातिवाद, छूआछूत, असमानता और वर्गीय हिंसा तथा घृणा को विस्तृत
रूप में व्यक्त किया जा रहा है, जिससे इन विषमताओं के प्रबल होने की संभावनाएँ
हैं, जिसके कारण समाज के पुनः पुराने दौर में जाने का खतरा हो सकता है। ऐसे ही
उपन्यासों में अमीश त्रिपाठी का ‘मेलुहा के मृत्युंजय’ और अशोक के बैंकर का ‘अयोध्या
का राजकुमार’ समाहित हैं।