भारतीय सामाजिक
संरचना में अधिकांश महिलाओं का दायरा घरेलू कार्यों के लिये और पुरुषों का बाहरी
कार्यों के लिये सुनिश्चित किया गया है। महिलाएँ बचपन से ही घरेलू कार्यों को
सीखती हैं जिससे व्यस्क होने तक घर की सभी कामों की जिम्मेदारी उठा सकें।
युवावस्था से बुढ़ापे तक उनको सभी घरेलू कार्य करने पड़ते हैं और आवश्यकता होने पर
भी पुरुषों का सहयोग नहीं मिलता। यह स्थिति घरेलू और कामगार दोनों ही महिलाओं की
है। घरेलू कार्यों में महिलाओं की दिनचर्या में कोई साप्ताहिक अवकाश नहीं होता और
ना ही सेवा निवृत्ति की कोई उम्र सीमा होती है। जब तक उनका शरीर शिथिल नहीं होता
या वो अस्वस्थ नहीं हो जातीं तब तक घरेलू कार्यों में उनकी व्यस्तता बनी रहती है।
राष्ट्रीय प्रतिदर्श
सर्वेक्षण कार्यालय, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के 2011-2012 के
68 वें दौर के सर्वेक्षण पर आधारित “घरेलू
कार्यों के साथ-साथ विनिर्दिष्ट क्रियाकलापों में महिलाओं की भागीदारी” नामक रिपोर्ट इसी व्यवस्था की पुष्टि करती है। इसके
अनुसार घरेलू कार्यों में कार्यरत महिलाओं का अनुपात ग्रामीण और नगरीय, दोनों ही क्षेत्रों
में निरन्तर बढ़ा है।