पढ़ने का शौक रखने वाले कोई भी कहानी, उपन्यास, या पत्रिका बिना पढ़े नही रह पाते हैं। वे हर चीज को इतना तल्लीन होकर पढ़ते हैं कि उन्हें समय की सुध ही नहीं रहती। साठ- सत्तर के दशक के पाठक इन्द्रजाल कॉमिक्स, चन्दामामा, नन्दन, साप्ताहिक हिन्दुस्तान आदि पढ़ कर बड़े हुए अनेक लोगों ने इन्हें ही पढ़ते–पढ़ते युवावस्था में प्रवेश किया और जैसे-जैसे उनके पढ़ने का दायरा बढ़ा। बेहतर उपन्यासों के साथ ही मनोहर कहानियाँ ,सत्यकथाएँ जैसी सनसनीखेज पत्रिकाएँ उनके सामने आती थीं। कुछ पाठकों को इनमें से अच्छा साहित्य पढ़ने के लिया प्रेरित किया जाता है। ऐसे पाठकों को एक सुन्दर दिशा मिल जाती है जिस पर वे सदैव चलते जाते हैं। हिन्दी उपन्यासों में आचार्य चतुरसेन, रवीन्द्रनाथ टैगोर, बन्किम चन्द्र आदि द्वारा लिखे गये उपन्यास सदा ही लोकप्रिय रहे हैं। इन्ही नामों में अपनी अलग पहचान बनाई है लोकप्रिय लेखिका शिवानी ने, जिनकी रचनाओं ने पाठकों पर अमिट छाप छोड़ी है। शिवानी का नाम लेते ही कुमाऊँ की पहाड़ियों के दृश्य आँखों के सामने घूम जाते हैं। उनकी रचनाओं में उल्लेखनीय हैं ‘विषकन्या’, ‘शमशान चम्पा’, ‘कृष्णकली’, ‘भैरवी’, ‘चौदह फेरे’, ‘सुरंगमा’, आदि जो पाठकों के दिलों के करीब हैं। ‘सुरंगमा’ का वह धारावाहिक जो साप्ताहिक हिन्दुस्तान में छपा करता था, वह आज भी मेरे पास संग्रहित रखा हुआ है।
अपनी नायिका की सुन्दरता का वह इतना सजीव चित्रण करतीं थीं कि लगता था कि वह समक्ष आ खड़ी हुई है। कभी लगता था कि शायद कुमाऊँ की पहाड़ियों पर वह असीम सुन्दर नायिका अपनी माँ के बक्से से निकाली हुई साड़ी पहने असाधारण लगती हुई खड़ी हो। कहीं किसी घर में ढोलक की थाप से उत्सव का वर्णन होता है ,तो कही कोई तेज तर्रार जोशी ब्राह्मण आदेश देता फिरता है। परिवार की भरी भरकम ताई खाट पर बैठी हैं और नायिका का नायक उसे छिपकर देख रहा है। कभी नायिका का एक पुरानी हवेली में जाना और एक बुढिया के अट्टहास से उसका सहम जाना। ये सभी वर्णन हमारी आँखों के सामने सचित्र उभर आते हैं।
शिवानी की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। मन करता था कि कभी वह मिलें तो उनसे पूछूँ कि उनकी कहानियों के पात्र क्या सच में कहीं हैं। यद्यपि अपने अन्तिम काल में वह बहुत कम लिखने लगीं थीं। मै उनके उपन्यासों का इन्तजार करती थी, पर शायद तब तक उन्होंने लिखना बन्द कर दिया था। परन्तु उनके जितने भी उपन्यास और कहानी संग्रह हैं, वे हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं।
-अमिता चतुर्वेदी
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