Friday, May 1, 2015

संघर्ष और चुनौती.

कभी-कभी जब शहर के कोलाहल, आलीशान इमारतों, भागती सड़कों से दूर खुले वातावरण में निकलती हूँ तो एक तरफ़ छोटे-छोटे टूटे-फ़ूटे, गरीबी ओढ़े हुए घर और दूसरी ओर नई कॉलोनियों एपार्टमेन्ट्स का रूप लेते खेत और मैदान दिखाई देते हैं। इन घरों में सुबह-सुबह से ही काम करती औरतें और फिर मजदूरी करने जाते हुए स्त्री और पुरुष दोनों दिखाई देते हैं जिनको पूरे दिन मेहनत करके अपना जीवन यापन करना पडता है। उनके बच्चे दिन भर निरर्थक भागते रहते हैं जिनका कोई सुनहरा भविष्य नहीं होता। यद्यपि गाँवों में बहुत से बच्चे पढ़ने जाते हैं परन्तु उनका ध्येय अधिक से अधिक सातवीं या आठवीं कक्षा तक पढ़ने का होता है। उसके बाद लड़कों को किसी छोटे-मोटे काम पर लगा दिया जाता है और और उनके माँ-बाप को लड़कियों के विवाह की चिन्ता सताने लगती है। शहरों में धन के अभाव में स्त्रियों को दूसरों के घर बर्तन माँजने, सफ़ाई करने या  खाना बनाने के लिये जाना पड़ता है।
ऐसे ही एक गरीब परिवार की औरत मेरे सम्पर्क में आई जो घरों में बर्तन माँजने और झाड़ू पौंछा करने का काम करती है। उसके पति की कुछ समय नौकरी रही परंतु थोड़े समय पश्चात् छूट गई। उसके बाद भी कई बार नौकरी लग कर छूट गई। औरत का परिवार असहाय अवस्था में आ गया। उसके बच्चों की पढ़ाई का समय आया। माँ का बहुत मन था कि बच्चे शिक्षित हों पर पिता का मानना था कि बच्चों की पढ़ाई का कोई औचित्य नहीं है। पति के विरोध के बाद भी उसने स्वयं काम करने का फ़ैसला लिया। यह उसके लिये नया और साहसिक कदम था क्योंकि इसके पहले बहुत कम ही अकेले घर से बाहर निकली थी। वह घरों में जाकर काम करने लगी। उसे अपने रिश्तेदारों और पड़ौसियों से छिपकर जाना पड़ता था क्योंकि घर में रहने वाली महिला जब बाहर कदम रखती है तो उसका बहुत तीव्रता से विरोध होता है। विरोध होने के बाद भी काम शुरु करके उसने अपनी कमाई से बच्चों को पढ़ाना प्रारम्भ किया।
सबसे बड़ा लड़का आठवीं कक्षा तक पढ़ा, पर फिर उसका पढ़ने में मन लगना बन्द हो गया। लेकिन इसके बाद उसके बेटे की एक चेन फ़ैक्ट्री में नौकरी लग गई। अब वह स्त्री और उसका बेटा मिलकर घर चलाने लगे। वह अपनी बेटियों को पढ़ाने में तत्पर हो गई। परन्तु अभी उस महिला के साहस की और परीक्षा होनी थी। एक दिन बेटा साइकिल से काम पर जा रहा था, तभी एक ट्रक की चपेट में आकर उसकी मृत्यु हो गई। इतना बड़ा आघात लगने से वह एकदम टूट गई । उसे सरकार से मुआवजे की उम्मीद थी जो लोगों ने उसे बँधाई थी पर वो मुआवजा भी बहुत कोशिश करने पर भी उसे नहीं मिला। कुछ समय तो उसका प्रत्येक कार्य से मन उखड़ गया परन्तु अपने बच्चों का भविष्य बनाने की लगन में उसने फिर से काम करना शुरू किया। बच्चों की पढ़ाई निरन्तर चलती रही। बड़ी बेटी का मन भी अपने भाई जितना ही लगा, लेकिन  जीवन की आवश्यकतानुसार उसकी पढ़ाई हो गई। दूसरी बेटी भी  स्कूल जाती थी। उसका पढ़ने में मन लगा। आज वो बीए कर रही है।
एक सुविधाविहीन स्त्री ने अपने बल पर सभी बच्चों को शिक्षा दिलवाई। उसके इस प्रयत्न में पूरी सच्चाई और एकाग्रता देख कर कुछ लोग प्रभावित हुए और उन्होंने उसकी सहायता भी की परन्तु उस महिला का स्वयं का अटल निश्चय और लगन एक उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस महिला की हिम्मत और लगन मुझे बहुत प्रेरणा देती थी। अधिकांश सुविधा सम्पन्न महिलाएँ जीवन भर घर में बैठी  रहती हैं और कुछ ना कर पाने के लिये परिस्थितियों का रोना रोती रहती हैं जबकि सच तो यह है कि कुछ करने की इच्छा और हिम्मत हो तो कोई भी काम असम्भव नहीं है। इस महिला ने भी समाज और पति का विरोध झेला। उसको भी सब कुछ सरलता से नहीं मिला और अभी भी वह संघर्ष में लगी हुई है।

-अमिता चतुर्वेदी 

2 comments:

  1. मजदूर दिवस के दिन एक महिला के श्रम और साहस की यह कहानी ना सिर्फ प्रासंगिक है बल्कि प्रेरणादायक भी।

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  2. अच्छी टिप्पणी पढकर लिखने का उत्साह बढता है।

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